सचिन पालीवाल
तिथि ज्ञात ना होने पर पितृ अमावस्या पर कर सकते हैं श्राद्ध – पंडित मनोज त्रिपाठी।
श्राद्ध से संबंधित कुछ सवालों पर आधारित है हमारा आज का लेख और हमारी जिज्ञासाओं का समाधान कर रहे हैं नारायणी शिला के पंडित मजोज त्रिपाठी जी।
प्रश्न 1- श्राद्ध क्या है, ये क्यों होते हैं और इनके करने का क्या विधि – विधान है ?
उत्तर – पंडित मनोज त्रिपाठी बताते हैं कि श्राद्ध का अर्थ ही है श्रद्धा। मन की श्रद्धा से जुड़ा हुआ हम जो अपने पितरों के निमित्त कार्य करते हैं, उन्हें अर्पण करते हैं वो श्राद्ध है। पितृपक्ष में जो श्राद्ध होते हैं इन्हें पारवन श्राद्ध कहते हैं। अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु पितरों से जो आशीर्वाद हम लेते हैं उन्हें काम्य श्राद्ध कहते हैं। इसके अलावा एक और श्राद्ध होता है जिसे सामान्यत: वार्षिक श्राद्ध या बरसी कहते हैं जो मृतक की तिथि पर हम उनके निमित्त करते हैं।
पितृपक्ष में हम अपने पितरों की पुण्यतिथि पर ब्राह्मणों द्वारा तर्पण करते हैं, पिंडदान करते हैं तत्पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। वस्त्र दान, गौ दान करते हैं। उनकी पुण्यतिथि पर यदि हम अपनी बहन के पुत्रों, बेटी के पुत्रों को भी घर बुलाकर भोजन कराते हैं तो उन्हें देखकर पितृ अतिप्रसन्न होते हैं। यदि हमारे द्वारा किए गए श्राद्ध में भूलवश कोई त्रुटि हो जाती है तो बहन, बेटी के पुत्रों को देखकर पितृ अप्रसन्न नही होते और श्राद्ध स्वीकार करते हैं।
प्रश्न 2- श्राद्ध में किन – किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है ?
उत्तर – सबसे पहली ध्यान रखने योग्य बात है शुद्धता की। देव कार्य में आपकी भावना शुद्ध होनी चाहिए लेकिन पितृकार्य में सभी कुछ शुद्ध होना चाहिए।
ब्राह्मण के लिए बनाया गया भोजन, तर्पण के समय पहने गए वस्त्र, आपका व्यवहार, आचरण, उच्चारण, मस्तिष्क और जिस ब्राह्मण को हमने भोजन के लिए आमंत्रित किया है उसका शुद्ध होना भी अत्यंत आवश्यक है। उसका कोई अंग-भंग या वो विकलांग ना हो। हमारे यहां भोजन करने से पहले वो कहीं अन्यत्र भोजन करके ना आया हो या बाद में भी ना जाए। वह पूजापाठी हो, शुद्ध हो, गायत्री जप करने वाला हो। इस प्रकार से ब्राह्मण को भोजन कराने का विधान है।
प्रश्न 3 – काक, श्वान एवं गौ इनका भाग निकालने का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – पंडित जी के अनुसार श्राद्ध में पंचबली का विधान है। पहली श्वान बलि ( कुत्ता ), दूसरी काक बलि ( कौआ ), तीसरी पीपलादी ( चींटी, कीड़े, मकोड़े ), चौथी विश्वदेवा और पांचवी गौ ग्रास ( गाए ) के निम्मित निकाले जाने वाला भोजन।
ऐसा माना जाता है कि जो अज्ञात रूप से भटकते हुए पितृ होते हैं जो श्रम करते हुए शरीर त्यागते हैं वो चींटी आदि का शरीर धारण करते हैं। जो पितृ आकाश मार्ग में विचरण करते हैं जो अधोगति को प्राप्त होते हैं उनके निमित्त कौए को भोजन दिया जाता है। जो बिल्कुल ही नीच गति को प्राप्त होते हैं उनके लिए कुत्ते को भोजन दिया जाता है। जिनका मोक्ष होना है जिनका अगला जन्म पुनः अपने परिवार में होना है और उन्हें मनुष्य देह में आना है वह गाय के रूप में आकर अपने भोजन को ग्रहण करते हैं।
प्रश्न 4- पुण्यतिथि पर श्रद्धा का उपयुक्त समय कौन सा होना चाहिए ?
उत्तर – समय को लेकर पंडित जी का स्पष्ट कहना है की सर्वोत्तम समय मध्यान्ह कल का माना जाता है। हम आती हुई तिथि लेते हैं। प्रातः 11:24 से अपराह्न 2:00 बजे तक श्राद्ध का विधान है। 2:00 बाद किया गया श्राद्ध निष्फल होता है पितृ स्वीकार भी नहीं करते और वे वापस अपने-अपने लोकों को प्रस्थान कर जाते हैं।
प्रश्न 5- क्या सिर्फ पुत्र और पौत्र ही श्राद्ध कर सकता है या महिलाएं भी कर सकती हैं ?
उत्तर – पंडित जी का कहना है कि हां महिलाएं भी शादी कर सकती हैं लेकिन पहला अधिकार घर के पुत्र एवं पौत्र का ही है लेकिन अगर किसी कारणवश घर में कोई पुरुष ना हो तो घर की महिलाएं या पुत्री श्राद्ध कर सकती हैं।
प्रश्न 6- क्या तर्पण कार्य में जनेऊ धारण करना आवश्यक है ?
उत्तर – पंडित जी चारों वर्गों के लिए जनेऊ आवश्यक बताते हैं। वह कहते हैं कि चारों वर्गों को यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए। यदि कोई तर्पण करते समय जैन उदाहरण नहीं भी करता है उसे स्थिति में एक कपड़ा जिसे हम गमछा बोलते हैं अपने कंधे पर रखना चाहिए और ब्राह्मण के कहे अनुसार तर्पण करते समय कंधे पर गमछा बदलते रहें। पितरों से उसका भी हमें वही फल और आशीर्वाद प्राप्त होता है जो जनेऊ धारण करने से मिलता है।
प्रश्न 7 – जिन्हें अपने पितरों की पुण्यतिथि का ज्ञान नहीं है वह कब श्राद्ध कर सकते हैं ?
उत्तर – पंडित जी कहते हैं कि इसके अलग-अलग विधान है जैसे माता का नवमी को श्रद्धा माना गया है। कोई परिवार में साधु संन्यासी बन गया हो उसका द्वादशी को श्राद्ध किया जाता है। इसी प्रकार से यदि कोई अकाल मृत्यु, दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त हुआ हो, आत्महत्या की हो, जलकर मर गया हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाना चाहिए। इन सब के बाद भी अगर हमें किसी तिथि का ज्ञात नहीं है तो हम अपने पितरों का श्राद्ध पितृ अमावस्या पर नि:संदेह कर सकते हैं।